फिक्र नहीं है अपनों की आज नया परिवार बना।रिश्ते सब ही क्षणभंगुर है पैसा ही आधार बना।।भौतिकवादी दुनियाँ में आज कौन पूछे किसको।माया से ही सब रिश्ते हैं, पैसा ही आभार बना।।

जुगनू

व्यक्तित्व निखरते देखा है।अस्तित्व को ढलते देखा है।।काली अमावस रातों में।जुगनू का साहस देखा है।। देखा है हमने एक रोज।छोटी सी बगावत जुगनू की।।सूर्योदय से कुछ पल पहले।घना अंधेरा देखा है।। है किरदार हमारा भी।कुछ-कुछ जुगनू सा लगता है।।खुद को खुद से लड़ते हमने।पल-पल खुद को देखा है।।

आज पंडित राम आचार्य की जन्मभूमि आवल खेड़ा में मेरे सहसंयोजन में काव्य कुंभ सफल संपन्न रहा

आज का अखबार

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पूर्णतः ध्वस्त हो गया।आज फिर अखबार सत्ता की गोदी में सो गया।। जो छपकर बिक रहे थे, वो बिक कर छप रहे हैं।मेरे देश में पत्रकार सत्ता रूपी माला जप रहे हैं।। सत्ता के दलाल पत्रकार ही आज अवार्ड पाते हैं।जो भी सच लिखते आज जेल की हवा खाते हैं।। सचContinue reading “आज का अखबार”

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